Wednesday, April 6, 2011

साक्षात्कार: डॉ. निकोलस मावृदिज़

डॉ. निकोलस मावृदिज़ इंटरैक्टिव रोबोट एण्ड मीडिया लैबोरेटरी (IRML) के संस्थापक तथा निदेशक हैं जहां इन्होने “FaceBots” एवँ “Ibn Sina” का आविष्कार किया है | उन्होंने कल शाम सात बजे संपन्न हुए अपोजी इनोवेटर्ज़ प्रोग्राम में अपने आविष्कारों के बारे में बताया | प्रस्तुत है उनसे हुई हमारी बातचीत के कुछ अंश :

ए.एच.पी. : आपने दुनिया भर के कॉलेजों में व्याख्यान दिए हैं | आपका अभी तक बिट्स का अनुभव कैसा रहा ?
निकोलस : मुझे यहाँ का शांत वातावरण पसंद आ रहा है व सभी इमारतें खासकर सरस्वती मंदिर बहुत अच्छे लगे | विशेष बात यह है कि यहाँ कुछ भी बढ़ा-चढ़ाकर नहीं दिखाया गया है | सब कुछ काफी वास्तविक है |

ए.एच.पी. : आपने रोबोटिक्स के क्षेत्र में आने का मन कैसे बनाया? आपके प्रेरणा स्त्रोत कौन थे ?
निकोलस : मुझे बचपन से ही यह जानने का शौक था कि सभी यन्त्र काम कैसे करते हैं | अपनी इसी जिज्ञासा को पूरित करने के लिए मैंने बचपन में अपना पिआनो भी तोड़ दिया था | मुझे आविष्कारों में काफी दिलचस्पी थी | हर चीज़ की काम करने की पद्धति जानने की इच्छा तथा कुछ नया करने के जज़्बे ने मुझे इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा दी | पौराणिक गणितज्ञ, इंजीनियर एवं दार्शनिक मेरे प्रेरणा स्त्रोत थे|

ए.एच.पी. : आपने उदघाटन समारोह में अक्युत-4 का प्रदर्शन देखा | अक्युत के बारे में आपके क्या विचार हैं ?
निकोलस : मुझे अक्युत का प्रदर्शन देखकर काफ़ी खुशी हुई | अक्युत टीम की मेहनत तथा लगन से मैं काफ़ी प्रभावित हूँ | उन्होंने बहुत ही अच्छी शुरुआत की है तथा कई अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं में विजय प्राप्त कर न केवल बिट्स का अपितु पूरे भारत का नाम रोशन किया है | लेकिन सफलता की नयी ऊचाईयों को छूने के लिए अब उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’, कंप्यूटर विज़न तथा स्पीच रिकग्नीशनके क्षेत्र में कदम उठाने चाहिए | अब समय आ गया है कि इसे एक ग्रेजुएट प्रोजेक्ट से एक रिसर्च प्रोजेक्ट में तब्दील कर इसे और बेहतर बनाया जाए |

ए.एच.पी. : फेस्बॉट्स तथा Ibn Sina के बारे में कुछ बताइए |
निकोलस : फेसबॉट एक ऐसा रोबोट है जो चेहरा और आवाज़ पहचान सकता है | साथ ही यह रोबोट आपकी फेसबुक की गतिविधियों व आपने पहले जो भी चैटिंग की है उसके आधार पर व्यावहार करता है| इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य है इंसानों और रोबोट्स के बीच दूरगामी रिश्ते बनाना | Ibn Sina पहला ऐसा रोबोट है जो अरबी भाषा बोलने व इंसानों के हाव भाव पहचानने में सक्षम है |

ए.एच.पी. : बिट्स की जनता के लिए आपका क्या सन्देश है ?
निकोलस : ज़माना बहुत तेज़ी से बदल रहा है | आने वाले समय में इंसान, जानवर व कृत्रिम पात्र एक साथ रहेंगे | साथ ही उन्होंने कहा कि हमें अपने आस पास चल रही चीज़ों के बारे में जिज्ञासु रहना चाहिए व तब तक उस के बारे में सवाल करते रहना चाहिए जब तक हमें उससे बेहतर सवाल न मिल जाये |


साक्षात्कार : डॉ. रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग



अपोजी के इस 29वें संस्करण में तमाम प्रख्यात अतिथि वाचक जिन्होंने इस उत्सव में ज्ञान का संचार करने का अद्भुत कार्य किया उनमें एक चमकता नाम है रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग | काल्पनिक विज्ञान से सम्बंधित पुस्तकों की लेखिका और मेडिकल चिकित्सक डॉ. रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग ने जब 27 मार्च को मंच संभाला तो अपने ज्ञान की धारा से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| लेक्चर के पश्चात अपोजी हिंदी प्रेस ने उनसे कुछ वार्तालाप की |
प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश -
ए.एच.पी.-आपने देश विदेश में कई दौरे किये होंगे तो बिट्स जैसे तकनीकी संस्थान आकर आपको यहाँ की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी?
रेशल- बिट्स में प्रवेश करते ही मुझे एक अजीब सी शांति एवं उत्साहवर्धक ऊर्जा का आभास हुआ| हालांकि मैंने बिट्स के पाठ्यक्रम नहीं देखा है परन्तु प्रयोगशालाओं तथा प्रोजेक्ट्स पर काम करते विद्यार्थियों को देखकर मैं मानती हूँ कि बिट्स में उमंग, प्रतिभा और नवीनता काबिल-ए-तारीफ़ है|

ए.एच.पी.- लेक्चर के दौरान आपने i-cells का ज़िक्र किया था| आपके अनुसार इस प्रकार की आधुनिक तकनीकें किस हद तक समाज के हक में हैं?
रेशल- i-cells एक ऐसी अनोखी cells हैं जो आसपास के वातावरण के अनुसार खुद को विकसित करती हैं| इन नयी cells से हम प्रकृति को और करीब से पहचान पाने में सफल होंगे| हालांकि इसका एक दूसरा पहलू यह है कि हम इस बात से अनजान रहेंगे कि यह cells किस दिशा में विकसित होंगी| परन्तु एक प्रकार से यह भी समाज के हित में कारगर हो सकता है|

ए.एच.पी.- आपके अनुसार आर्किटेक्चर और जीव विज्ञान में क्या समानता है?
रेशल- मुझे लगता है कि यह दोनों क्षेत्र आपस में काफी हद तक जुड़े हुए हैं| जहाँ आर्किटेक्चर में हम किसी इमारत के निर्माण में ध्यान केंद्रित करते हैं वहीँ जीव विज्ञान में हमारा शरीर ही इस इमारत का काम करता है| इसी आधार पर हम अपने शरीर की सम्पूर्ण संरचना को सँवार सकते हैं|

ए.एच.पी.- क्या यह भारत की आपकी पहली यात्रा है? इस देश में आकर आपका क्या अनुभव रहा?
रेशल- नहीं...इससे पहले मैं सन् 1992 में भारत आई थी एक मेडिकल छात्र के रूप में| उस वक्त मैंने यहाँ कुष्ठरोग से सम्बंधित एक कैम्प में भाग लिया था| जहाँ तक भारत की बात है तो इस देश का मेरे करियर को दिशा देने में बहुत बड़ा योगदान रहा है| जब 1992 में मैंने यहाँ आकर कुष्ठरोग के पीड़ितों को करीब से देखा तो मुझे जीव विज्ञान के क्षेत्र में जाने की प्रेरणा मिली|

ए.एच.पी.- इस उभरती नयी पीढ़ी को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी ?
रेशल- आज दुनिया में सभी लोग सिर्फ मुश्किलों और आपदाओं को टालने के प्रयत्न में लगे हैं| हाल ही में हुए जापान में प्राकृतिक आपदा का उदाहरण देते हुए मैं हर नौजवान को यह सन्देश देना चाहूंगी कि अब वो समय आ गया है जब हमें इन मुश्किलों को टालने की बजाये जड़ से हटा देने का प्रयास करना होगा | और यह तभी संभव है जब लोग अपनी जिज्ञासा बढ़ाएँ, प्रकृति को सौहार्द्रता से देखें और नए हल तलाशने का प्रयत्न करते रहें |

साक्षात्कार : मुख्य अतिथि : श्री प्रभु चावला



ए.एच.पी : इतनी बड़ी संख्या में युवाओं के समक्ष उपस्थिति देकर आपको कैसा लग रहा है?
प्रभु चावला : युवाओं का उत्साह देखकर काफी हर्ष हुआ | यहाँ आने से पूर्व ही मुझे यह पता था कि यहाँ के छात्र अत्यंत होनहार एवं काबिल हैं | अतः यहाँ आकर ज्ञान बांटना मेरा अभिप्राय नहीं था | यहाँ आकर मैंने छात्रों से काफी कुछ सीखा जिन्होंने अपोजी जैसा इतना बड़ा उत्सव आयोजित किया है| थोड़ा बहुत तो सोचा था कि यहाँ आकर क्या-क्या बोलना है किन्तु यहाँ के छात्रों के उत्साह ने मुझे भी एक कॉलेज के युवा जैसा अनुभव करा दिया और शायद इसलिए मैं भी उन्हीं की मस्ती में रम गया |

ए.एच.पी.- जब आप किसी से प्रश्न पूछते हैं तो आप के जहन में क्या होता है? किसी से भी बेबाक प्रश्न करते समय आप क्या सोचते हैं ?
प्रभु चावला : मेरे सभी प्रश्न जनता के ही प्रश्न होते हैं | इसलिए उन्हें करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती | मैं अपने शो में आये व्यक्ति को अतिथि नहीं मानता और मेरा लक्ष्य होता है अटैककरना और सत्य को उगलवाना एक बार मैंने अपने शो में आये एक व्यक्ति से एक ही प्रश्न तब तक नौ बार पूछा जब तक मैं उसके उत्तर से संतुष्ट नहीं हो गया |

ए.एच.पी : आपने 1980 में 11 वर्ष उपरांत एक लेक्चरर की भूमिका से हटकर पत्रकारिता जगत में कदम रखा | आपको अपने लक्ष्य को पहचानने में क्या 11 वर्ष लग गए?
प्रभु चावला : नहीं ऐसी बात नहीं है | एक पत्रकार के रूप में मैं स्वयं को ज्यादा स्वतंत्र एवं प्रभावशाली महसूस करता हूँ | पत्रकारिता में प्रभुत्व तो रहता ही है, साथ ही आर्थिक रूप से भी काफी सुदृढ़ता आ जाती है जोकि एक लेक्चरर के रूप में नहीं मिल पाती | मैंने पत्रकारिता में कड़ी मेहनत से लोगों से आगे निकल कर अपना मुकाम बनाया और नाम कमाया |

ए.एच.पी. : आपके लौबिस्ट पर क्या विचार हैं?
प्रभु चावला :हाँ, पत्रकारिता जगत में कई लोग नेताओं और बड़े बिजनेस टाइकून्स के प्रभाव में आ जाते हैं | किन्तु मैं इस सन्दर्भ में काफी खुले विचारों वाला हूँ | मैंने एक बड़े बिजनेस हाउस से हुई अपनी सम्पूर्ण वार्ता अपने ब्लॉग पर डाल रखी है | आप मेरे ब्लॉग prabhuchawla.blogspot.com पर इससे सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं | साथ ही मेरे कॉलम ‘Ask Prabhu’ पर आप अपने प्रश्न पूछ सकते हैं | मैं इसपर रोज़ करीब 20-25 प्रश्नों के जवाब देता हूँ|

ए.एच.पी. : “पेड न्यूजऔर मीडिया एथिक्सपर आपके क्या विचार हैं ?
प्रभु चावला : हाँ, “पेड न्यूजका प्रचलन चुनाव के समय ज्यादा होता हैं और मुझे भी इससे सम्बंधित ऑफर आये हैं लेकिन मै कभी इसके प्रभाव में नहीं आया | उच्च पदों पर कार्यरत लोगों के इस सम्बन्ध में क्या विचार हैं, मैं इस बात पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाल पाऊंगा | हाँ, आजकल मीडिया एथिक्सका लगातार ह्रास हो रहा है| हमारे यहाँ हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पत्रकार इनका सख्ती से अनुपालन करें किन्तु यह सत्य है कि पूर्ण रूप से हम भी सफल नहीं हैं|

ए.एच.पी : क्या, आज आप के वक्तव्य का केन्द्रीय विषय बॉयफ्रैंड और गर्लफ्रैंड पर आधारित था ?
प्रभु चावला : जब मैंने सारे कॉस्टन के इंट्रो देखे तो सब में एक चीज़ सामान्य थी, वह कि सभी के गर्लफ्रैंड के बारे में ज़िक्र; इसलिए मैंने अपने वक्तव्य में दर्शकों के मूड को देखते हुए इनका बारम्बार प्रयोग किया |

ए.एच.पी. : आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देते हैं ?
प्रभु चावला : इसका श्रेय मेरी पत्नी को जाता जो मुझे 35 वर्षों से झेल रही है |

ए.एच.पी. : आप अपोजी में छात्रों को क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
प्रभु चावला : मैं बस यही सन्देश देना चाहूँगा कि सवाल  करो” | जितने ज्यादा आप प्रश्न करेंगे उतना ही ज्यादा नया सीख सकेंगे और ज्ञान वर्धन होगा |

साक्षात्कार : टेक्नो मैजीशियन - क्रिस्टोफर जेम्स


AHP Members with Christopher James


ए.एच.पी. : कनाडा से बिट्स तक की यात्रा कैसी रही ?
जेम्स : कनाडा से बिट्स तक का सफर काफी लंबा था परन्तु सुखद रहा | अपोजी का आमंत्रण मिलने पर काफी हर्ष हुआ और यहाँ अपने शो के लिए काफी उत्साहित हूँ |

ए.एच.पी. : आप इससे पहले भारत में कहाँ-कहाँ शो कर चुके हैं ?
जेम्स : मैं इससे पहले भारत में दिल्ली, IIT गुवाहाटी, जलंधर और NIT त्रिची में शो कर चुका हूँ | मेरा अनुभव शानदार तथा रोमांचक रहा |

ए.एच.पी. : आपको मैजीशियन बनने की प्रेरणा कहाँ से मिली ?
जेम्स : मैं बचपन से ही डेविड कॉपरफील्ड के शो टीवी पर देखा करता था | और एक बार मैंने अपने परिवार के साथ लास वेगस में एक मैजिक शो देखा | उसी से मुझे जादू सीखने की प्रेरणा मिली | मैं 19 साल की उम्र से ही कनाडा में प्रोफ़ेशनल शो कर रहा हूँ और पिछले तीन वर्षों से मैं दूसरे देशों में भी अपनी प्रतिभा दिखा रहा हूँ |

ए.एच.पी. : आपके टेक्नो मैजीशियन होने का क्या राज़ है?
जेम्स : जब मैं भारत के NIT त्रिची के टेक-फेस्ट में शो करने वाला था तब लोगों ने मुझसे कुछ तकनीकी जादू करने की मांग की | तब ही से मैं फ़ेस्ट के अनुरूप ही जादू करने का प्रयास करता हूँ |

ए.एच.पी. : आपने जादू से सम्बंधित दो किताबें व कुछ DVDs निकाली हैं, उनके बारे में कुछ बताएं ?
जेम्स : मैंने दो किताबें लिखी हैं, ‘मैजिक-ऐज़ आई सी इटऔर ब्लैक डेकजो कि एक विशेष तरह के कार्ड्स के लिए ट्रिक बुक है | इस किताब से कोई भी जादू सीख सकता हे |
दो DVDs भी निकाली हैं जिनमें से एक का नाम स्कार्पियनहै | इनसे आप तरह-तरह की जादू की कलाएँ सीख सकते हैं, बल्कि मेरा आज का शो भी कोई भी कर सकता है, बस सही प्रशिक्षण की ज़रूरत है |
ए.एच.पी. : क्या आप प्राइवेट शो के साथ साथ चैरिटी शो भी करते हैं ?
जेम्स : मैं हर महीने 2 या 3 शो चैरिटी के लिए करता हूँ | दरअसल मेरे कुछ दोस्त चैरिटी कॉन्सर्ट्स कराते हैं | इस तरह मैं भी उनके साथ लग गया | इसके साथ साथ इन शोज़ से मुझे ज्यादा दर्शकों तक पहुँचने का मौका मिलता है | कभी भी मेरे शो और दर्शकों के बीच पैसे बाधक नहीं बने हैं |
ए.एच.पी. : आप बिट्स में कब तक रहेंगे?
जेम्स : मैं बिट्स में पूरे फ़ेस्ट के दौरान स्ट्रीट मैजिक करूँगा | साथ ही एक इवेंट में जज की भूमिका में भी रहूँगा |

ए.एच.पी. : बिट्स की जनता के लिए आपका क्या सन्देश देना चाहेंगे ?
जेम्स : मेरा छात्रों के लिए यह सन्देश है कि छात्र ज्यादा से ज्यादा इवेंट्स में भाग लें और फ़ेस्ट का आनंद लें |

उद्घाटन समारोह- अपोजी 2011


जिसके लिए हर शख़्स बेकरार था
जिस घड़ी का हमें कब से इंतज़ार था |
लफ्ज़ कम पड़ जायेंगे, हम कह न पाएंगे
कभी न भूलेगा वो लम्हा इतना यादगार था||”
कुछ ऐसी ही शब्दलता मन में अनायास उठती है जब अपोजी 2011 के अद्भुत आगाज़ के वो मनोरम दृश्य आँखों के समक्ष जी उठते हैं| सभी कॉस्टन, डिपार्टमेंट्स, क्लब्स और संघों की कई माह की कड़ी मेहनत और लगनशीलता तब सफल हुई जब 25 मार्च की संध्या को बिट्स पिलानी का ऑडिटोरियम गूँजती तालियों से झूम उठा और आगाज़ हुआ बिट्स के 29वें वार्षिक तकनीकी महोत्सव अपोजी 2011का |
हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है,
हम अकेले नहीं चलते दवा भी साथ चलती है |”
-प्रभु चावला
उद्घाटन समारोह की शुरुआत सुप्रसिद्ध पत्रकार और संपादक माननीय प्रभु चावलाके गरिमामयी आगमन से हुई| सभी कॉस्टन एवं आदरणीय रघुरामा सरकी उपस्थिति में उन्होंने दीप प्रज्वलित कर एक बेहतरीन शाम का आगाज़ किया| प्रेसिडेंट गोविन्दम यादव द्वारा स्वागत के पश्चात प्रभु चावला ने मंच संभाला और कोई व्याख्यान न देते हुए उन्होंने अपने ही अंदाज़ में समस्त जनता से बस कुछ सीधेसच्चेसवाल पूछे |
समारोह को आगे बढ़ाते हुए अक्युत-4’ की प्रस्तुति ने समां बाँध दिया| हाँलाकि प्रारंभ में कुछ तकनीकी खा़मियों के कारणवश अक्युत मंच पर प्रस्तुति नहीं दे पाया था परन्तु अंततः जब उसने लोगों के समक्ष आकर अविस्मरणीय करतब दिखाए तो हर चेहरा अवाक् रह गया| तत्पश्चात सभी लोगों को डी-लॉन्स में आमंत्रित किया गया जहाँ सभी ने चायनीज़ लेंटर्न्सजलाकर हवा में उड़ाए और बिट्स के आकाश को रोशनी से जगमगा दिया|
अंत में सबका मनोरंजन करने मंच पर आये कनाडा के प्रख्यात तकनीकी जादूगर क्रिस्टोफर जेम्सने अपने शानदार कारनामों से लोगों का दिल जीत लिया| अपने प्रत्येक जादू के लिए उन्होंने दर्शक दीर्घा से छात्र व सुन्दरछात्राओं को बुलाया और अत्यंत करीबी से अविश्वसनीय जादूगरी दिखाकर विस्मित कर दिया| समारोह के समापन पर उन्होंने ड्रम्स पर भी अपना जौहर दिखाया और लोगों को थिरकने पर मजबूर कर दिया|
इस प्रकार बिट्स पिलानी के वार्षिक तकनीकी महोत्सव अपोजी-2011’ के 29वें संस्करण का भव्य एवं अलौकिक आगाज़ हुआ जिसके आधार पर अगले चार दिनों में होने वाले शानदार आयोजनों से उम्मीदें और भी पुख्ता हो चुकी हैं|
इस पतवार का दामन ना छोड़ोअभी डूबी नहीं है ये नाव|
इसे मंजिल मत समझो मेरे यारों.. ये है महज़ एक पड़ाव ||