Monday, January 23, 2012


कल्पेश भट्ट के बिट्सियन दौरे की एक झलक
प्री अपोजी एक्स्ट्रावैगेंज़ा के चलते शनिवार 21 जनवरी को डिपार्टमेंट ऑफ़ पेप ने “कल्पेश भट्ट” का लेक्चर आयोजित किया |  लेक्चर में संवाद का विषय था -"How Ordinary People created Extraordinary Masterpiece”| कल्पेश वर्तमान में हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साऊथ एशियन एथिक्स एंड वेल्यूस पर रिसर्च कर रहे हैं|
लेक्चर की शुरुआत उन्होंने अपने कैरियर के बारे में वार्ता से की | गौरतलब है कि कल्पेश ने बिट्स पिलानी से कंप्यूटर साइंस में बैचलर तथा भौतिकी में मास्टर्स की पढ़ाई की है | 25 साल की उम्र में बॉस्टन(U.S.A)  में जब वे अपने कैरियर के चरम पर थे तब जन-परोपकार की भावना उन्हें भारत वापस ले आई और वे BAPS स्वामीनारायण नामक संस्थान से जुड़ गए | उन्होंने अपने भारत आगमन के बाद के दो उन कार्यो की चर्चा की जिन्होंने कल्पेश को एक अलग पहचान दिलाई - सर्वप्रथम अक्षरधाम मंदिर और इसके पश्चात आइमैक्स फिल्म मिस्टिक इंडिया |  उन्होंने अक्षरधाम के निर्माण को विस्तार से समझाया और आने वाली कठिनाइयों का भी उल्लेख किया | विदेशी संस्थानों ने तो अक्षरधाम के कार्य समाप्ति का समय 40-45 साल बताया था परन्तु स्वामीनारायण के मार्गदर्शन पर चलते हुए कल्पेश व BAPA के कई हज़ार कार्यकर्ताओं की दिन रात मेहनत से अक्षरधाम का कार्य मात्र 5 वर्ष में पूरा हो गया | निर्देशन की शून्य जानकारी रखने वाले कल्पेश को जब एक आइमैक्स फिल्म बनाने का मौका मिला तब उन्होंने हॉलीवुड से मदद मांगना ही उचित समझा | हॉलीवुड के लोगों ने जब कल्पेश को 20 हफ्ते पूरे भारतवर्ष में शूटिंग का प्रस्ताव सुनाया तब समय व् पैसे की कमी के चलते उन्होंने यह कार्य स्वयं करने का निर्णय लिया | उन्होंने यह फिल्म उचित तकनीकी स्टाफ की मदद से मात्र 13 हफ्तों में बनाई और इस फिल्म को शीर्षक  
“मिस्टिक इंडिया” के साथ आइमैक्स फिल्म महोत्सव में प्रस्तुत किया गया | इस फिल्म को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ |  उन्होंने छात्रों को अपने भुज व सुनामी के दौरान किये  गए आपदा राहत कार्यों और अनुभव के बारे में भी अवगत कराया |
उन्होंने हाल ही में विश्व प्रख्यात डिजाइनर Yves Pepin, ECA2 के साथ मिलकर भारत  के सबसे खूबसूरत वाटर शो : 'सत-चित-आनंद' का निर्माण किया है | 45 मिनट के इस दर्शनीय प्रदर्शन में  बेहतरीन तकनीक के द्वारा पानी, आग, विडियो एवं ध्वनी का इस्तेमाल करते हुए मृत्यु के समकक्ष  एक बालक द्वारा दिखाए साहस और बुद्धिमानी पर आधारित एक पौराणिक घटना को  दर्शाया गया है |   अंत में उन्होंने छात्रों के सवालों के जवाब भी दिए | एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने धर्म और आध्यात्मिकता के बीच का अंतर बहुत ख़ूबसूरती से समझाया | जाते जाते वे सभी श्रोतओं को ये सन्देश दे गए कि "आदमी स्वयं का शिल्पकार है" | हमें उम्मीद है कि हम ये सन्देश याद रख सकेंगे और इस यादगार अनुभव को कभी न भूल पायेंगे|

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