Monday, February 15, 2010

एक सवाल आपसे

दोस्तों, प्रवाह के इस अंक तक वाणी 2009 आप सभी तक पहुँच चुकी है| मेरे मन में कुछ सवाल हैं, जो कि मैं आप सभी से पूछना चाहूंगी| सर्वप्रथम उन सभी लोगों को धन्यवाद, जिन्होंने वाणी की मेस साइनिंग करके हमें सहयोग दिया, जिसकी वजह से हम वाणी आप सभी तक पहुंचा सके| आप सभी के लिए एक सवाल –आपने वाणी की साइनिंग क्यों की? क्या इसलिए, कि कोई दोस्त, विंगी या सीनियर साइन करवा रहा था? या फिर इसका नाममात्र शुल्क? क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि कॉलेज की वार्षिक पत्रिका को अपने लोकप्रिय होने का सबूत देना पड़ रहा है?
अगर गौर नही किया तो गौर कीजिये| आपके कॉलेज की वार्षिक पत्रिका का 2009 का अंक चंद आंकड़ों का मोहताज था| कल्पना कीजिये, हमारा गौरवशाली कॉलेज, उसकी उपलब्धियां और पता नही क्या क्या? और महसूस कीजिये हकीकत को, कि ऐसे संस्थान की वार्षिक पत्रिका कुछ महीनों पहले तक अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही थी| अगर आप जानना चाहते हैं कि इसकी वजह क्या है, तो वो वजह हैं आप| आप और आपका वो उदासीन रवैया जिसकी वजह से आपने अपने आप को एक दायरे में सीमित कर दिया है|
किसी के gtalk status में लगी हुई कोइ लिंक पढ़ने में आपको कोई हिचक नही है,भले ही वो हिंदी में हो,लेकिन वही बात अगर आपके हाथ में हिंदी पत्रिका की हो, तो आपके माथे पर सलवटें पड़ जाती हैं| अपनी बात कहने के लिए आप ब्लॉग, फेसबुक का प्रयोग करते हैं, लेकिन हिंदी में कुछ लिख कर देना आपकी शान के खिलाफ है, आखिर क्यों? क्यों आपको बात करते वक्त हिंदी बोलना या sms में हिंदी लिखते वक्त शर्म नही आती, लेकिन हिंदी लिखना या पढ़ना आपके लिए शर्म की बात हो गयी है?
ऐसा क्यों है की कोई अंग्रेजी पत्रिका पहली बार पढ़ने में आप हिचकते नहीं| उसे पढते हैं, कुछ असभ्यताओं की आलोचना भी करते हैं, दोस्तों से विचार भी बाँटते हैं| लेकिन किसी हिंदी किताब की बात हो, तो साँप सूंघ जाता है| अब वाणी को ही ले लीजिए, कितने कम लोगों को पता था की 'वाणी' भी हमारे कॉलेज की वार्षिक पत्रिका है, और उसका वही स्थान वही दर्जा होना चाहिए जो किसी अन्य प्रकाशन का हो|
देखिये मैं हिन्दी भाषा के लिए आन्दोलन नहीं कर रही हूँ, न ही ऊपर लिखी किसी भी बात के खिलाफ हूँ| मैं सिर्फ ये कहना चाहती हूँ की हम लोग अपनी एक पहचान को खोने की कगार पर हैं और यह गलत है, अगर हम इस दिशा में कोई कदम न उठायें|
वाणी- 2010 के लिए अपना योगदान दें और उसे अपना वही स्थान पुनः पाने में सहयोग करें| एक और नम्र निवेदन उन सभी लोगों से जिनहोने वाणी-2009 पढ़ी| अपनी प्रतिक्रिओं और विचारों से हमे अवगत कराएं| हमें बताइए अगले अंक से आपकी क्या अपेक्षाएं हैं, और आप क्या परिवर्तन देखना चाहते हैं| उम्मीद है आप अपनी उस "वाणी" को मौन नही होने देंगे|
-हिना जैन
अपनी रचनाएँ हमें प्रेषित करें :-
Vaani.bits@gmail.com

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