Sunday, January 29, 2012

“फाउंडर्स डे और बसंत पंचमी का भव्य आयोजन” 
शनिवार,28 जनवरी 2012, का दिन बिट्स के दूसरे सेमेस्टर के उत्सवों की श्रृंखला में अपनी अनोखी छाप छोड़ गया | मौका था 61वें फाउंडर्स डे और बसंत पंचमी का| कड़कड़ाती सर्दी को चुनौती देते हुए सरस्वती मंदिर में बसंत पंचमी की सुबह का आगाज हुआ और अगली कड़ी में पूजा ग्राउंड में “मौर्य विहार “ द्वारा सरस्वती प्रतिमा स्थापना के साथ उत्सव के अगले भाग “फाउंडर्स डे” का बिट्स ऑडिटोरियम में सायं 5 बजे से भव्य आयोजन हुआ|


बिट्स प्रशासन, छात्र संगठन-प्रशासन,अन्य गणमान्य लोगों एवं बिट्सियन जनता की उपस्थिति में 61वाँ “फाउंडर्स डे” बिट्स की गरिमा और राष्ट्र की रंगीन संस्कृति को समर्पित था|


कार्यक्रम के प्रथम भाग में कुछ कल्चरल असोसिएशन द्वारा पारंपरिक नृत्य , कला और झाकियों का प्रदर्शन किया गया| इसकी अगली कड़ी में अध्यापन अतिरिक्त सेवाओं से सेवानिवृत हो रहे कर्मचारियों का सम्मान प्रमाण पत्र एवं स्मृति चिन्ह देकर बिट्स प्रशासन ने आभार प्रकट किया| इनमें अधिकांश कर्मचारी बिट्स में अपनी रजत जयंती और कुछ 40 बसंत देख चुके थे|


इसके उपरांत सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने फिर से मनोरंजन और संस्कृति का समां बाँधा|


कार्यक्रम के बीच में अपोजी 2012 की विभिन्न गतिविधियों के बारे में भी बताया गया | कार्यक्रम सुखद अनुभव के साथ 7:45 पर समाप्त हुआ| गौरतलब है की “फाउंडर्स डे” बिट्स का वार्षिकोत्सव है और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों से ऐसा लग रहा था मानो बिट्स नाम के पौधे पर जैसे सारे विरले फूल महक रहे हों|

Monday, January 23, 2012


कल्पेश भट्ट के बिट्सियन दौरे की एक झलक
प्री अपोजी एक्स्ट्रावैगेंज़ा के चलते शनिवार 21 जनवरी को डिपार्टमेंट ऑफ़ पेप ने “कल्पेश भट्ट” का लेक्चर आयोजित किया |  लेक्चर में संवाद का विषय था -"How Ordinary People created Extraordinary Masterpiece”| कल्पेश वर्तमान में हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साऊथ एशियन एथिक्स एंड वेल्यूस पर रिसर्च कर रहे हैं|
लेक्चर की शुरुआत उन्होंने अपने कैरियर के बारे में वार्ता से की | गौरतलब है कि कल्पेश ने बिट्स पिलानी से कंप्यूटर साइंस में बैचलर तथा भौतिकी में मास्टर्स की पढ़ाई की है | 25 साल की उम्र में बॉस्टन(U.S.A)  में जब वे अपने कैरियर के चरम पर थे तब जन-परोपकार की भावना उन्हें भारत वापस ले आई और वे BAPS स्वामीनारायण नामक संस्थान से जुड़ गए | उन्होंने अपने भारत आगमन के बाद के दो उन कार्यो की चर्चा की जिन्होंने कल्पेश को एक अलग पहचान दिलाई - सर्वप्रथम अक्षरधाम मंदिर और इसके पश्चात आइमैक्स फिल्म मिस्टिक इंडिया |  उन्होंने अक्षरधाम के निर्माण को विस्तार से समझाया और आने वाली कठिनाइयों का भी उल्लेख किया | विदेशी संस्थानों ने तो अक्षरधाम के कार्य समाप्ति का समय 40-45 साल बताया था परन्तु स्वामीनारायण के मार्गदर्शन पर चलते हुए कल्पेश व BAPA के कई हज़ार कार्यकर्ताओं की दिन रात मेहनत से अक्षरधाम का कार्य मात्र 5 वर्ष में पूरा हो गया | निर्देशन की शून्य जानकारी रखने वाले कल्पेश को जब एक आइमैक्स फिल्म बनाने का मौका मिला तब उन्होंने हॉलीवुड से मदद मांगना ही उचित समझा | हॉलीवुड के लोगों ने जब कल्पेश को 20 हफ्ते पूरे भारतवर्ष में शूटिंग का प्रस्ताव सुनाया तब समय व् पैसे की कमी के चलते उन्होंने यह कार्य स्वयं करने का निर्णय लिया | उन्होंने यह फिल्म उचित तकनीकी स्टाफ की मदद से मात्र 13 हफ्तों में बनाई और इस फिल्म को शीर्षक  
“मिस्टिक इंडिया” के साथ आइमैक्स फिल्म महोत्सव में प्रस्तुत किया गया | इस फिल्म को प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ |  उन्होंने छात्रों को अपने भुज व सुनामी के दौरान किये  गए आपदा राहत कार्यों और अनुभव के बारे में भी अवगत कराया |
उन्होंने हाल ही में विश्व प्रख्यात डिजाइनर Yves Pepin, ECA2 के साथ मिलकर भारत  के सबसे खूबसूरत वाटर शो : 'सत-चित-आनंद' का निर्माण किया है | 45 मिनट के इस दर्शनीय प्रदर्शन में  बेहतरीन तकनीक के द्वारा पानी, आग, विडियो एवं ध्वनी का इस्तेमाल करते हुए मृत्यु के समकक्ष  एक बालक द्वारा दिखाए साहस और बुद्धिमानी पर आधारित एक पौराणिक घटना को  दर्शाया गया है |   अंत में उन्होंने छात्रों के सवालों के जवाब भी दिए | एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने धर्म और आध्यात्मिकता के बीच का अंतर बहुत ख़ूबसूरती से समझाया | जाते जाते वे सभी श्रोतओं को ये सन्देश दे गए कि "आदमी स्वयं का शिल्पकार है" | हमें उम्मीद है कि हम ये सन्देश याद रख सकेंगे और इस यादगार अनुभव को कभी न भूल पायेंगे|

Sunday, January 22, 2012




एच.सी. वर्मा का बिट्स आगमन

       एन.एस.एस. और निर्माण द्वारा आयोजित “धिति” के अंतर्गत बिट्स आए प्रॉफ़ेसर एच.सी. वर्मा ने 21 जनवरी की शाम ऑडिटोरियम में अपना लेक्चर दिया| तकरीबन सभी छात्र-छात्राओं ने अपने विद्यालयों में वर्मा जी की प्रख्यात पुस्तकों को पढ़ रखा है और जब ऐसी शक्सियत ने हमारे बीच शिरकत की तो कैम्पस का वातावरण मंत्रमुग्ध हो उठा|

वर्तमान में डॉ. वर्मा आई.आई.टी. कानपुर में कार्यरत हैं| गौरतलब है कि वर्मा जी प्रायः बिड़ला पब्लिक स्कूल के आमंत्रण पर पिलानी आए थे| इसी के चलते एन.एस.एस. और निर्माण ने प्रो. अंशुमन दाल्वी (जिन्होंने अपनी पी.एच.डी. वर्मा सर के सानिध्य में आई.आई.टी. कानपुर से की थी) के माध्यम से उनको बिट्स में भी आमंत्रित किया|
आदरणीय वर्मा जी ने जिज्ञासु छात्रों व् शिक्षकों से भरे ऑडिटोरियम में लोगों को सर्वप्रथम भारत की विज्ञान जगत एवं अन्य उपलब्धियों से रूबरू कराया| तत्पश्चात उन्होंने भविष्य में आने वाली कठिनाइयों पर काफी ज़ोर दिया| उन्होंने हालाँकि भारत की शिक्षा प्रणाली पर करारा प्रहार किया और कहा कि यह भारत के विकास की सबसे बड़ी रुकावट है| उन्होंने युवाओं को यह सन्देश दिया कि वे अधिक से अधिक संख्या में एन.एस.एस., निर्माण एवं ‘शिक्षा सोपान’ जैसी संस्थाओं से जुड़ें और राष्ट्रहित में कार्य करें|
उन्होंने बताया की शिक्षा के साथ समाज सेवा की प्रेरणा उन्हें लोगों से ही मिलती है| उन्होंने कहा कि सभी को अपने सिद्धांत कभी नहीं भूलने चाहिए और स्वयं की प्रगति के साथ-साथ देश, समाज एवं मानवता की प्रगति के लिये भी तत्परता के साथ कार्यशील रहना चाहिए| आरक्षण के गंभीर मुद्दे पर भी आवाज़ उठाते हुए श्री वर्मा जी ने बताया कि वे इस सम्पूर्ण प्रणाली से नाखुश हैं और इसका विरोध करते हैं| उनके अनुसार आरक्षण के चलते श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों में काबिल और होनहार विद्यार्थियों को दाखिला नहीं मिल पता है और यह देश-हित के विरुद्ध है |
अपने बीते दिनों को याद करते हुए वर्मा जी ने बताया कि अपनी प्रख्यात पुस्तक एच.सी.वर्मा को पूरा करने में उन्हें 9 वर्ष लग गए| इस दौरान कई लोगों ने उनका विरोध भी किया परन्तु उन्होंने इस अत्यंत प्रचलित पुस्तक को अंजाम तक पहुँचा कर ही दम लिया| डॉ. एच.सी. वर्मा का यह बिट्सियन दौरा सभी के लिए एक यादगार अनुभव सिद्ध हुआ|




ग्रिफिथ्स से वार्तालाप


हिंदी प्रेस से साथ हुई वार्तालाप में डेविड ग्रिफिथ्स से कुछ अनोखी बातें जानने को मिली|

एच.पी.सी.- भारत और बिट्स में आपका अनुभव कैसा रहा? क्या आप भारत में और भी किसी विश्वविद्यालय में गए हैं?  

ग्रिफिथ्स- हाँ, मैं आई.आई.टी बॉम्बे गया था| मुझे यहाँ दो चीजें बहुत अच्छी लगी कि- यहाँ के लोगो में गुस्सा कम है, भले ही कोई होर्न बिना मतलब के बजाते रहे, इतनी ज्यादा जनसँख्या में गुस्सा काबू कर पाना काबिल-ए-तारीफ़ है| दूसरी चीज़ जो मुझे यहाँ अच्छी लगी वो है यहाँ कि सुन्दरता| ताज महल जितनी खूबसूरत ईमारत मैंने अभी तक नहीं देखी, खैर इतनी खूसूरत इमारत दुनिया में कहीं होगी भी नहीं| मुझे यहाँ औरतों के कपड़े भी बहुत लाजवाब लगे| हर साड़ी जैसे कुछ कहना चाहती हो| और मुझे यहाँ दो चीज़े जो ख़राब लगी वो बेशक यहाँ की जनसँख्या है और यहाँ पर सड़क किनारे पड़ा हुआ कूड़ा कचड़ा है| हाल ही में मैं उदयपुर में था ,जब कुछ जवान लड़के दो बोरी भर कचड़ा डाल कर चले गए और मुझे देखकर मुस्कुरा कर बोले "दिस इस इंडिया", यह स्वभाव मुझे पसंद नहीं आया|

एच.पी.सी.- आपको फिजिक्स के क्षेत्र में जाने की प्रेरणा कहाँ से मिली?

ग्रिफिथ्स- मुझे शुरू से ही विज्ञान पसंद था और पहले से ही भरोसा था की मैं एक वैज्ञानिक बनूँगा| और मेरा मानना है की फिजिक्स बहुत ही फंडामेंटल साइंस है इसी कारण मैंने फिजिक्स चुनी| मुझे  इतिहास में भी शौक था पर उसमें आप एक आज़ाद चिड़िया नहीं बन सकते, आपको हर चीज़ के बारे में बताना पड़ता है कि यह इन्फोर्मेशन  कहाँ से पाई गयी है वरना वह लिखना गुनाह है| इसीलिए विज्ञान चुना जिसमें आप कुछ भी सोच सकते हो| मैं कभी मजबूर नहीं था कि मुझे कोई नयी खोज करनी है| मुझे शुरू में फिजिक्स या कोई भी अन्य विषय मुश्किल लगता था पर फिर समझने के बाद बेहद आसान |

एच.पी.सी.- आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा कौन रहा है?

ग्रिफिथ्स -हाई स्कूल में मेरे गणित और विज्ञान के अध्यापक ,कॉलेज में नोबेल खिताब जीतने वाले एड पर्सेल और पी.एच.डी के दौरान मेरे एडवाईसर सिडनी कोलमन जो मेरा मानना है सबसे अच्छे फिजिक्स अध्यापक होंगे |

एच पी सी- क्वांटम फिजिक्स में उन्नति पर आपके क्या विचार है?

ग्रिफिथ्स - क्वांटम फिजिक्स के बारे में बहुत कम जाना गया है| अभी उन्नति शुरू होने लगी है पर २०-२५ साल बाद जब एक नया आइन्स्टाइन उभर के बाहर आएगा और बोलेगा यह सब गलत है या सारी चीज़े सीख लेगा तब मैं कहूँगा कि क्वांटम फिजिक्स में उन्नति हुई है|

एच पी सी- बिट्सियन जनता के लिए कुछ शब्द|

ग्रिफिथ्स- कीप इट अप |

Saturday, January 21, 2012

कल्पेश भट्ट : स्वयंसेवी, रचनात्मक निर्देशक, निर्माता व विद्यार्थी


अक्षरधाम को साक्षात् स्वरूप देने के कार्य में अग्रणी रहे स्वयंसेवी कल्पेश भट्ट ने भारत में आपदा राहत के लिए मदद से लेकर विश्वस्तरीय सांस्कृतिक त्योहारों के आयोजन जैसे बहुत से क्षेत्रों में काम किया है |
एक कंप्यूटर इंजीनियर रह चुके कल्पेश जी ने बिट्स पिलानी से भौतिकी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की|  भारत में जन परोपकार के लिए वे अमेरिका में अपना काम छोड़ कर भारत गए| BAPS अक्षरधाम  संस्थान  में एक स्वयंसेवक के बतौर उन्होंने जो कार्य किये उनमें  उन्होंने विज्ञान अध्यात्म, परम्परागतता आधुनिकता का भरपूर संयोजन किया|
भारत  की सर्वप्रथम विशाल स्क्रीन(large-format IMAX) में फिल्म  'मिस्टिक इंडिया' के रचनात्मक निर्देशक निर्माता के बतौर उन्होंने 108 स्थानों पर इसे फिल्माने के साथ-साथ 45,000 कलाकारों के दल का प्रबंधन भी किया| उनकी इस फिल्म में उन्होंने भारत की भौगोलीय सांस्कृतिक विविधता को दर्शाने के साथ ही विश्वास,  बहादुरी एकता का सन्देश भी दिया है| 'मिस्टिक इंडिया' का अब तक 13 देशों के 54 IMAX सिनेमाघरों में प्रदर्शन किया जा  चुका है और इसे पेरिस में अंतर्राष्ट्रीय viewers choice पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है|
उन्होंने हाल ही विश्व प्रख्यात डिजाइनर Yves Pepin, ECA2 के साथ मिलकर भारत  के सबसे खूबसूरत वाटर शो : 'सत-चित-आनंद' का निर्माण किया है | 45 मिनट के इस दर्शनीय प्रदर्शन में बेहतरीन तकनीक के द्वारा पानी, आग, विडियो एवं ध्वनी का इस्तेमाल करते हुए मृत्यु के समकक्ष  एक बालक द्वारा दिखाए साहस और बुद्धिमानी पर आधारित एक पौराणिक घटना को दर्शाया गया है|
भारत से जुड़े विषयों पर आधारित फिल्मों मल्टीमीडिया प्रदर्शनों का निर्माण निर्देशन करते हुए कल्पेश जी को भारत के अतुल्य सांस्कृतिक धरोहर को करीब से समझने का मौका मिला| अपनी यात्रा, अनुसंधाननिरीक्षण अनुभव से उन्हें सीखने की प्रेरणा मिलती है|  इन दिनों कल्पेश जी हॉवर्ड विश्वविद्यालय से दक्षिणी एशियाई  शिक्षा के क्षेत्र  में पढ़ रहे हैं|
अक्षरधाम प्रारूप व योजना प्रबंधन समिति के महतवपूर्ण सदस्य होने के नाते कल्पेश स्वामीनारायण अक्षरधाम की रचना की दिलचस्प कहानी, जो की इस इमारत जितनी ही खूबसूरत व प्रेरणादायक है, में शरीक है|