Wednesday, April 6, 2011

साक्षात्कार : डॉ. रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग



अपोजी के इस 29वें संस्करण में तमाम प्रख्यात अतिथि वाचक जिन्होंने इस उत्सव में ज्ञान का संचार करने का अद्भुत कार्य किया उनमें एक चमकता नाम है रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग | काल्पनिक विज्ञान से सम्बंधित पुस्तकों की लेखिका और मेडिकल चिकित्सक डॉ. रेशल आर्मस्ट्रॉन्ग ने जब 27 मार्च को मंच संभाला तो अपने ज्ञान की धारा से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| लेक्चर के पश्चात अपोजी हिंदी प्रेस ने उनसे कुछ वार्तालाप की |
प्रस्तुत हैं उसके कुछ अंश -
ए.एच.पी.-आपने देश विदेश में कई दौरे किये होंगे तो बिट्स जैसे तकनीकी संस्थान आकर आपको यहाँ की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी?
रेशल- बिट्स में प्रवेश करते ही मुझे एक अजीब सी शांति एवं उत्साहवर्धक ऊर्जा का आभास हुआ| हालांकि मैंने बिट्स के पाठ्यक्रम नहीं देखा है परन्तु प्रयोगशालाओं तथा प्रोजेक्ट्स पर काम करते विद्यार्थियों को देखकर मैं मानती हूँ कि बिट्स में उमंग, प्रतिभा और नवीनता काबिल-ए-तारीफ़ है|

ए.एच.पी.- लेक्चर के दौरान आपने i-cells का ज़िक्र किया था| आपके अनुसार इस प्रकार की आधुनिक तकनीकें किस हद तक समाज के हक में हैं?
रेशल- i-cells एक ऐसी अनोखी cells हैं जो आसपास के वातावरण के अनुसार खुद को विकसित करती हैं| इन नयी cells से हम प्रकृति को और करीब से पहचान पाने में सफल होंगे| हालांकि इसका एक दूसरा पहलू यह है कि हम इस बात से अनजान रहेंगे कि यह cells किस दिशा में विकसित होंगी| परन्तु एक प्रकार से यह भी समाज के हित में कारगर हो सकता है|

ए.एच.पी.- आपके अनुसार आर्किटेक्चर और जीव विज्ञान में क्या समानता है?
रेशल- मुझे लगता है कि यह दोनों क्षेत्र आपस में काफी हद तक जुड़े हुए हैं| जहाँ आर्किटेक्चर में हम किसी इमारत के निर्माण में ध्यान केंद्रित करते हैं वहीँ जीव विज्ञान में हमारा शरीर ही इस इमारत का काम करता है| इसी आधार पर हम अपने शरीर की सम्पूर्ण संरचना को सँवार सकते हैं|

ए.एच.पी.- क्या यह भारत की आपकी पहली यात्रा है? इस देश में आकर आपका क्या अनुभव रहा?
रेशल- नहीं...इससे पहले मैं सन् 1992 में भारत आई थी एक मेडिकल छात्र के रूप में| उस वक्त मैंने यहाँ कुष्ठरोग से सम्बंधित एक कैम्प में भाग लिया था| जहाँ तक भारत की बात है तो इस देश का मेरे करियर को दिशा देने में बहुत बड़ा योगदान रहा है| जब 1992 में मैंने यहाँ आकर कुष्ठरोग के पीड़ितों को करीब से देखा तो मुझे जीव विज्ञान के क्षेत्र में जाने की प्रेरणा मिली|

ए.एच.पी.- इस उभरती नयी पीढ़ी को आप क्या सन्देश देना चाहेंगी ?
रेशल- आज दुनिया में सभी लोग सिर्फ मुश्किलों और आपदाओं को टालने के प्रयत्न में लगे हैं| हाल ही में हुए जापान में प्राकृतिक आपदा का उदाहरण देते हुए मैं हर नौजवान को यह सन्देश देना चाहूंगी कि अब वो समय आ गया है जब हमें इन मुश्किलों को टालने की बजाये जड़ से हटा देने का प्रयास करना होगा | और यह तभी संभव है जब लोग अपनी जिज्ञासा बढ़ाएँ, प्रकृति को सौहार्द्रता से देखें और नए हल तलाशने का प्रयत्न करते रहें |

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