Friday, March 27, 2009

माइकल क्रीमो

माइकल क्रीमो - एक नयी सोच
हम बड़े सौभाग्यशाली हैं की हमें डॉ. क्रीमो (जो एक वैदिक पुरातत्ववेत्ता और कई पुस्तकों के लेखक हैं) द्वारा बड़ा ही ज्ञानवर्धक व्याख्यान सुनने को मिला जिससे हमे मानव विकास के बारे में हमारे विचारों को जाँचने-परखने का एक मौका मिला है | यह व्याख्यान काफी सफल रहा और ६०० से भी अधिक लोग इसमें उपस्थित रहे | व्याख्यान का प्रमुख "फोकस " हमें इस संभावना पर विशवास दिलाना था की एक मानव बाहरी शरीर, मन और चेतना का मिश्रण है न कि सिर्फ शरीर है | इस तरह हमारे सामने डार्विन के सिद्धांतों से बिलकुल विपरीत एक मत रखा गया |
(सम्पादक नोट - डॉ. क्रीमो कि किताब ' फोर्बिडन आर्कैओलोजी ' मार्केटिंग और स्पोंसरशिप बूथ कमरा संख्या १२१५ से खरीदी जा सकती है | )
साक्षात्कार

१. सर, आप क्या सोचते कि डार्विन के सिद्धांत को समर्थन में कोई ठोस साबुत ना होते हुए भी उसके इतने समय तक स्वीकार किये जाने का प्रमुख कारण क्या है ?
डार्विन को सिद्धांत को समर्थन में अवश्य ही कुछ सबूत हैं और यह सिद्धांत जीव विज्ञान के अधिकतम तथ्यों की स्थापना कर पाया | वैज्ञानिक समुदाय में बहुत कम लोग हैं जिनके विचार इससे हटकर हैं | साथ हे साथ, सरकारों का सिक्षा पाठ्यक्रम कर एकाधिकार भी इसका एक कारण है | फिर अगर कोई चीज़ किसी ऐसी चीज़ के विरुद्ध है जिसके हम आदि हो चुके हैं, तो उसे नकारना तो मानव प्रकृति है | वैज्ञानिक डार्विन सिद्धांत के इतने आदि हो चुके हैं कोई भी सिद्धांत जो उसका खंडन करता है उन्हें बिलकुल मंजूर नहीं है | ज्ञान का निस्पंदन भी बड़ा कारण है |

२. वेदों के अलावा और क्या सबूत हैं जो आपके द्वारा दिए गए डार्विन सिद्धांत के विकल्प का समर्थन करते हैं ?
बहुत से अर्कैओलोजिकल सबूत हैं जो यह दर्शाते हैं की मानव धरती पर १५०,००० वर्षों के काफी पहले से रह रहा है | सूक्ष्म मन और चेतना के अस्तित्व को दिखने वाले भी सबूत मौजूद हैं पर उन्हें पूरी तरह से अनदेखा किया गया है | जैसे कि इस्तवान दासी द्वारा लिखित पुस्तक " nature's IQ " में पशु जगत से जटिल व्यवहार के ऐसे कई उद्धारण दिए गए हैं जो विकास को नकारते हैं |

३. आपकी पुस्तक ने धर्म और विज्ञानं को जोड़ने कि कोशिश कि है | इससे वैज्ञानिक जगत कि सोच पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
मैं एक ऐसा इंसान हूँ जो सत्य को ढूँढ रहा है और मुझे वह जहां भी मिलता है मैं उससे स्वीकार करने को तैयार हूँ | विज्ञान का इतिहास यह दर्शाता है कि हर अग्रणी वैज्ञानिक के विछार कहीं ना कहीं भगवान से प्रभावित थे और डार्विन भी उनमे से एक हैं | धर्म और विज्ञान के बीच का यह कृत्रिम भेद वैज्ञानिक प्रगति और सत्य कि खोज में बाधा बन रहा है | मैं यह सोचता हूँ कि मेरी पुस्तक यह उद्धारण प्रस्तुत करेगी कि कैसे परम सत्य का ज्ञान मानव पुरातनता और जीवन के उग्रम जैसे जटिल विषयों को हल सकता है |

४. इस्कॉन से जुड़ने और कृष्ण भक्ति से आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
भगवद् गीता को पढ़ने के बाद मेरे सामने एक पूरा नया जगत था | मैं इस बात से काफी प्रभावित था कि उसमे दिए गए शलोक न सिर्फ देवत्व बल्कि वर्तमान भौतिक दुनिया के बारे में भी सब कुछ बताते हैं | मेरी हाल ही में आई पुस्तक " human devolution " भगवद् गीता के एक ही शलोक का विस्तार है - ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रक्रितिस्थानि कर्षति | (15 वां अध्याय , ७वाँ शलोक )

५. क्या आप हमे हिस्टरी चैनेल पर इसी महीने प्रसारित कि जा रही टी.वी. सीरिज़ ' एंसिएंत एंलिएंस " जिसपर आप आ रहे हैं उसके बारे में थोड़ा और बता सकते हैं ?
मैं काफी टी.वी. और रेडियो चैनलों पर आता रहता हूँ ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस वैकल्पिक सिद्धांत के अस्तित्व का पता लग सके | इसमें मैंने बताया है कि मानव धरती पर सैकडों वर्षों से रह रहा है और ग्रहों के बीच यात्रा जैसी चीज़ें संभव थी जैसा कि वेदों और पुरानों में बताया गया है |

६. कोई मैसेज जो आप इस प्रमुख तकनिकी इंस्टिट्यूट के छात्रों को देना चाहेंगे ?
मैं तकनीकी प्रगति के बिलकुल विरुद्ध नहीं हूँ | परर्न्तु अगर यह इंसान को उसके प्रमुख लक्ष्य कि प्राप्ति में बाधा बनती है तो यह अवश्य ही हानिकारक है | पारिस्थिकी असंतुलन और पर्यावरण संकट का भी यही कारण है | अगर विज्ञानं इंसान को "devolution " रोकने में मादा कर सकती है तो वह निश्चित ही अच्छा है | अतः छात्रों को खुले दिमाग से सत्य को जानने कि कोशिश करनी चाहिए चाहे वो वर्त्तमान मानदंडों का अवलंघन ही क्यों ना करे |

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