Friday, March 12, 2010

मीरा एच सान्याल से मुलाकात

उन्हें एक पेशेवर बैंकर कहें या एक सामाजिक कार्यकर्ता, वो इन सब में फिट बैठती हैं | जी हाँ, हम बात कर रहे हैं मीरा एच सान्याल की, जिनसे अपोजी हिंदी प्रेस ने की मुलाकात | आमने-सामने हुए वार्तालाप के दौरान मीरा ने  बताया कि बिट्स एक बहुत ही अच्छा संस्थान है तथा मेरे काफी सारे मित्र यहाँ से पढ़ चुके हैं | उन्होंने कहा कि उन्हें उद्घाटन बहुत पसंद आया, विशेषकर शुरुआत में दिखाई गयी विडियो जिसमें उन्हें  व्यावसायिकता की झलक दिखाई पड़ी | मीरा ने यहाँ के छात्रों के ऊर्जा की सरहना की |
एक पेशेवर बैंकर होने के साथ ही सामाजिक कार्यों जैसे निर्धनता उन्मूलन, नारी सशक्तिकरण, जैव विविधता का संरक्षण आदि में अपनी भागीदारी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि हर कार्य के लिए समय निकालना तो काफी मुश्किल होता है पर इन कार्यों में उनकी विशेष रूचि के कारण ये संभव हुआ  | इन कार्यों को करने की प्रेरणा उन्हें परिक्रमा जैसे चंद NGOs में कार्यरत लोगों से मिलती है | नारी सशक्तिकरण हेतु माइक्रोफिनांस नामक पॅालिसी से गरीब और पिछड़ी महिलाओं की आर्थिक उन्नति की पुरजोर कोशिश कर रही हैं | अब तक लगभग 6500 से भी ज्यादा महिलाएं इससे लाभान्वित हो चुकी हैं और करीब 50% से ज्यादा महिलाओं  ने इस पॅालिसी को दुबारा अपनाया है | उनका मानना है कि माइक्रोफिनांस का मूल उद्देश्य बैंक के लिए पैसा बनाना नहीं अपितु हमारे देश में महिलाओं की आर्थिक स्तिथि को मजबूती प्रदान करना है | इसी तरह मीरा HIV(+)  और नशे के आदी बच्चों के पुनर्वास से जुड़े कार्यों में भी अपना योगदान दे रही हैं | सतत विकास और विरासत के संरक्षण पर जोर देते हुए सान्याल ने हमें बताया की वो न सिर्फ मेलघाट और सुंदरवन लाइफलाइन जैसे प्रोजेक्ट्स पर कार्यरत हैं अपितु और भी ऐसे कई प्रोजेक्ट्स की तलास में हैं जिससे की नीचे तबके के लोगों को रोटी, कपडा और मकान मुहैया कराइ जा सके |
26/11 के बारे में पूछे जाने पर  उन्होंने काफी शिकायती लहजे में कहा कि वे सरकार द्वारा अपनाये गए रवैये से काफी अचंभित थी | अपने चुनाव लड़ने के बारे में उन्होंने कहा कि वह चाहती हैं कि सरकार के काम करने के तरीके में कुछ बदलाव आये | यद्यपि वो चुनाव हार गयीं, पर उनका चुनावी अनुभव काफी अच्छा रहा |भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी कमजोरी के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था की कोई भी राजनेता (politician ) बुरा  नहीं होता है और हर राजनेता अपने हिसाब से अच्छा काम करने की कोशिश ही करता है | पर सारी समस्याएँ यहाँ से शुरू होती हैं की जब हम ये चाहते हैं के किसी कंपनी का सीईओ शिक्षित, बुद्धिमान, कुशाग्र-बुद्धि तथा  ज्ञानी हो तो हम अपने द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के लिए ऐसा क्यों नहीं सोचते हैं, क्यों हम किसी अशिक्षित एवं आपराधिक पृष्टभूमि वाले व्यक्ति के हाथ में अपने देश की बागडोर सौंप देते हैं |देश की सबसे बड़ी ताकत आखिर अक्षम हाथों में क्यों ?
इस प्रश्न के जवाब में कि “भारतीय राजनीती को कैसे सुधार जा सकता है ?” उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बातें कहीं जिनके माध्यम से उन्होंने आम जनता से अपील करते हुए कहा कि हम :
  • अपने अधिकारों का उपयोग करें |
  • अपने सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह करें |
  • लोगों को उच्च स्तर की माँग करने की जरूरत है |
युवा पीढ़ी से जुड़े रहने के लिए उन्होंने ट्विटर  और ब्लॉग जैसे विकल्पों पर भी विचार विमर्श किए | छात्रों को अपने सन्देश में उन्होंने कहा कि “हमें एक कार्यकर्ता नहीं बल्कि एक बेहतर और सक्रिय नागरिक बनना चाहिए” |

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