Monday, February 13, 2012

समीर हंचाटे से रूबरू हुआ हिंदी प्रेस क्लब


इंटरफेस के दौरान हो रहे अनेक रोचक आयोजनों में शामिल थी फिल्म-मेकिंग वर्कशॉप जिसमें समीर हंचाटे, स्टॉक मार्केट पर आधारित फिल्म “गफ़ला” के निर्देशक, बिट्सियन जनता से रूबरू हुए| समीर ने 1998 में ‘समीर हंचाटे फिल्म-मेकर’ नाम से एक फिल्म प्रोडक्शन कम्पनी खोली थी जिसके अंतर्गत वे US में भी दो लघु-फिल्मों “एंजेल” व् “ब्लैंक” का निर्माण कर चुके हैं| कैम्पस पर ऐसे शख्स को पाकर हिंदी प्रेस क्लब उनसे रूबरू हुआ और उन्होंने भी पूरे शौक हमारे हर सवालों का जवाब दिया| एक नज़र इस साक्षात्कार के प्रमुख अंगों पर :-

  
एच.पी.सी.- बिट्स में आकर कैसा लगा?
समीर- बेहद सुखद अनुभव रहा| पहली बार इतने इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के साथ फिल्म निर्माण सम्बन्धी वर्कशॉप पर काम किया और यहाँ के लोगों की मेहमान नवाज़ी  ने मुझे बहुत प्रभावित किया |

एच.पी.सी.- फिल्म निर्माण के क्षेत्र में किसी गंभीर व्यक्ति के लिए क्या दो घंटे की  वर्कशॉप पर्याप्त है?
समीर - मेरे हिसाब से ऐसी किसी भी  वर्कशॉप का उद्देश्य इच्छुक व्यक्ति को सही दिशा, उस क्षेत्र विशेष में आने वाली समस्याएँ व उस कार्य की उपयोगिता समझाना होता है| यहाँ के लोगों की व्यस्त दिनचर्या देखते हुए दो घंटे में अपनी बात रखने में कुछ दिक्कत तो जरूर हुई पर वर्कशॉप के लिए आने वाले लोगों की रुचि देखकर मैं जो करने आया था शायद वो कर पाया |

एच.पी.सी.- आज 'फिल्में' साहित्य का एक प्रमुख अंग हैं और साहित्य का सृजन समाज को सार्थक दिशा देने के लिए होना चाहिए| क्या आज-कल की फिल्में इस कथन का पालन कर रही हैं?
समीर - देखिए, नैतिक दृष्टि से आज का समय निश्चित ही फिल्म इंडस्ट्री के लिए हार है| कई नामचीन निर्देशक और अभिनेता फिल्म निर्माण के उद्देश्य को भूल सा गए हैं| लोग भी अपनी आपाथापी भरी जिंदगी में दिमाग को सुलाकर देखी जा सकने वाली मनोरंजक फिल्में देखना पसंद करते हैं| 50 -60 का दशक हिंदी फिल्म-जगत का 'स्वर्ण- युग' रहा पर उस ज़माने जैसी फिल्में भी बनाने में हम नाकाम हो रहे हैं,पर कुछ नए विचारशील व्यक्ति इस दौर को संजीवनी प्रदान कर रहे हैं|

एच.पी.सी. - क्या "गफ़ला" के बाद अब आप किसी नए 'प्रयोग' के लिए तैयार हैं?
समीर - 'गफ़ला' स्टॉक-एक्सचेंज पर आधारित फिल्म थी जो बॉक्स-ऑफिस पर नाकाम रही | फिल्म के प्रमोशन और मार्केटिंग में कमी के साथ-साथ बड़े नामों का न होना फिल्म की असफलता के प्रमुख कारण रहे | अभी मैं "मौर्या-मौर्या" नाम की महाराष्ट्र में घटित क्राइम पर आधारित फिल्म बना रहा हूँ |

एच.पी.सी. - कोई ऐसा तरीका आप के पास है जो छोटे बजट की अच्छी फिल्मों को भी सफल बना सके
समीर - मैं भी ऐसे ही किसी तरीके की तलाश में हूँ, पर फिर भी मुझे लगता है कि फिल्मों की
मार्केटिंग के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाना चाहिए
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एच.पी.सी. - बिट्सियन जनता के लिए आपका क्या सन्देश है?
समीर - आप अभी से एम.बी.ए. के बिना ही मैनेज करना सीख रहे हैं जो जीवन के किसी भी क्षेत्र के लिए अति महत्वपूर्ण है | अपनी दिनचर्या को व्यस्त रखिए और अपने कार्य में बेहतर करने का निरंतर प्रयास करते रहिए

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