Sunday, October 19, 2008

श्री सुमंत रिखी द्वारा बिट्स के लिए कविता : पुरानी यादें

सुमंत रिखी - पिछले ओएसिस के मुख्य अतिथि द्वारा पठित कविता का अंश आप सभी के लिए :

हर हवा के झोंकें में पिलानी की खुशबू ढूँढता हूँ,
हर बस स्टैंड में नूतन ढूँढता हूँ,
हर तालाब में शिव गंगा ढूँढता हूँ,
हर शमशान में एक शिवमंदिर ढूँढता हूँ,
हर मन्दिर के आँगन में घास ढूँढता हूँ,
हर घास पर मोर ढूँढता हूँ,
हर सीख में एक नया फंडा ढूँढता हूँ,
हर परोठे के बगल में एक अंडा ढूँढता हूँ,
कुर्सी में बिट्स में खेले क्रिकेट का विकेट ढूँढता हूँ,
हर ऊँची दीवार के पीछे एक मीरा भवन ढूँढता हूँ,
हर बात में एक लच्छा ढूँढता हूँ,
हर मौके पे वेलागिरी ढूँढता हूँ,
हर वर्तमान पल में अतीत ढूँढता हूँ,
तुम सबके खूबसूरत चेहरे में अपना चेहरा ढूँढता हूँ ||

इस शानदार कविता के लिए हम श्री सुमंत रिखी को धन्यवाद देना चाहते हैं|

आपके लिए दो लाइन हिन्दी प्रेस की तरफ़ से :

चाहे कितना भी ढूँढ ले आप यह सब कुछ,
पर नामुमकिन है कहीं और यह सब मिला पाना,
हमे भी पता है सुमंत - द चीफ एक ही है,
नामुमकिन है ऐसे चीफ को कभी भूल पाना |

2 comments:

  1. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

    डेश बोर्ड से सेटिंग में जायें फिर सेटिंग से कमेंट में और सबसे नीचे- शो वर्ड वेरीफिकेशन में ’नहीं’ चुन लें, बस!!!

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